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सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

आजाद स्वामी व्यक्तिगत नाम नहीं- १ प्रतीक - सबकुछ स्वतंत्र सत्ता ईश्वर कर्ता

बाल्यकाल से ही स्वामी विवेकानंद जीऔर स्वामी रामतीर्थ जी 'आजाद'

के प्रेरणास्त्रोत रहें हैं।

विवेकानंद सिखायी उदारता- कुंए के मेढक न बनों। 

मेरा परिवार, मेरा सम्प्रदाय से बाहर होकर,  

वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना का विकास !

 रामतीर्थ सिखाया वेदांत- मैंने किया न

कहकर राम ने किया कहते।

आजादस्वामी भी इसी

प्रेरणा से प्रकट हुआ। 

हम सब सेवक हैं, सब किसी न किसी

सेवा कर रहे हैं । 

सनातन धर्म है सेवा - हमारा मूल स्वभाव

है सेवा ।


हिंदू -मुस्लिम- सिख - ईसाई आदि 

सम्प्रदाय हैं , परिवर्तित हो सकते

हिंदु मुसलमान बन सकता, 

सिख  ईसाई बन सकता पर 

जैसे पानी का धर्म स्वभाव है शीतलता

मानव का धर्म है सेवा

जो परिवर्तित नहीं हो सकता

जैसे पहले कहा-

हम सब सेवक हैं, सब किसी न किसी

सेवा कर रहे हैं । 


आजाद स्वामी तो केवल परमात्मा ही 

हो सकते हैं। 


रामतीर्थ से प्रेरणा लेकर जैसे वो कहते

राम ने पुस्तक पढी या राम ने ये किया


वैसे ही निर्भय अनूपानंद 

''आजादस्वामी''    प्रयोग करता है। 

तो इसको अन्यथा न लेकर आजाद

की भावना को आप समझें, इसलिए

स्पष्ट किया !        

🌸जयसच्चिदानंद दयालुजी🌸





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AZAD MAHATMA JI

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